मनसा देवी मंदिर हरिद्वार का इतिहास
मनसा देवी मंदिर हरिद्वार का इतिहास एक प्रसिद्ध धार्मिक स्थल है जो कि हरिद्वार में हर की पौड़ी के पास गंगा किनारे पहाड़ी पर स्थित श्रधा एवम् आस्था का केंद्र है | यह धार्मिक स्थल हरिद्वार शहर से लगभग 3 किमी दूर स्थित है | यह मंदिर 52 शक्तिपीठों में से एक है | हरिद्वार के “चंडी देवी” और “माया देवी” के साथ “मनसा देवी” को भी सिद्ध पीठों में प्रमुख माना जाता है | मनसा देवी मंदिर हरिद्वार का इतिहास को शाक्ति का एक रूप माना जाता है । यह मंदिर माँ मनसा को समर्पित है , जिन्हे वासुकी नाग की बहन बताया गया है | कहते है कि माँ मनसा देवी मंदिर हरिद्वार का इतिहास शक्ति का ही एक रूप है , जो कश्यप ऋषि की पुत्री थी , जो उनके मन से अवतरित हुई थी और मनसा कहलवाई | मनसा देवी के बारे में यह भी माना जाता है कि मनसा देवी और चण्डी देवी दोनों पार्वती के दो रूप है जो एक दूसरे के करीब रहते है। ऐसा भी माना जाता है कि भगवान शंकर की मन से उभरी एक शक्ति है। ‘मनसा’ शब्द का प्रचलित अर्थ “इच्छा” है ।
नाम के अनुसार “मनसा” माँ अपने भक्तो की मनसा (इच्छा) पूर्ण करने वाली है | भक्त अपनी इच्छा पूरी करने के लिए मंदिर प्रांगण में स्थित पेड की शाखा पर एक पवित्र धागा बाँधते है | जब भक्तो की इच्छा पुरी हो जाती है तो भक्त पुनः आकर उसी धागे को शाखा से खोल देते है | इस प्रथा से माता के प्रति असीम श्रधा , भक्ति और निष्ठा दिखाई देती है | भक्त मनसा माँ को खुश करने के लिए मंदिर में नारियल , प्रसाद एवम् मिठाई आदि भेटस्वरुप चढाते है | यह मनसा देवी मंदिर हरिद्वार का इतिहास सिद्ध पीठ है ,जहाँ का आशीर्वाद प्राप्त होता है | इस मंदिर में माँ मनसा देवी मंदिर हरिद्वार का इतिहास की दो मूरत है , एक मूरत “आठ भुजाओ” वाली व अन्य मूरत के “तीन सिर” और “पाँच भुजाये” है |
मनसा देवी मंदिर हरिद्वार का इतिहास की पूजा गंगा दशहरा के दिन “हरिद्वार” के साथ साथ बंगाल में भी की जाती है | किसी किसी स्थान में कृष्णपक्ष पंचमी को भी देवी की पूजा की जाती है |